लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने बहुत ही भावुक लेकिन बुनियादी और संतुलित भाषण दिया है. जिस आत्मविश्वास के साथ उन्होने भारत को आगे ले जाने का खाका खीचा वह प्रशंसनीय है. जहां एक ओर उन्होने यह जताने का पूरा जतन किया की वो एक आम आदमी हैं और आम लोगो के दुखों से बहुत ही गहरे सरोकार रखते हैं; वहीं दूसरी ओर अपनी वैश्विक समझ का उदाहरण अपनी विदेश नीति की बातों मे दिया. ऐसा ही एक प्रसंग था हर घर मे शौचालय. जिस तरह बड़े ही बेबाकी से उन्होने महिलाओं की समस्या को सामने रखा, कई लोगों को तो शायद शर्म आ रही होगी की इस मंच से, इस बात को, इस तरह से रखना! क्या बेतुकी सी बात है. लेकिन उनकी इस समझ की प्रशंसा करनी होगी की वो बड़े लोगों की तरह से केवल बड़ी बातें कर के बड़े-बड़े सपने नही दिखा रहे थे; बल्कि जमीनी रूप से एक ऐसी समस्या की कार्य योजना पर बात कर रहे थे जो सच मे आज हमारे समाज के मुंह पर कालिख है.
उनका यह भाषण कई मायनों मे अनोखा था. कुछ भी पहले से लिखा नही था, जो बोला गया वो मन का उद्गार था. प्रधानमंत्री नें जो संकल्प दिखाया देश के नेता के रूप में; यह एक अनोखी घटना लगी. पहली बार कोई आज़ाद भारत मे जन्मा प्रधानमंत्री भाषण दे रहा था; यह बात भाषण मे ही दिखाई दे रही थी.सबको साथ ले कर चलने और विकास पर ध्यान केन्द्रित करने का संकल्प मन को छू गया.
कई योजनाओं का ऐलान भी किया जिनमे योजना आयोग की जगह नई संस्था, सांसद आदर्श ग्राम योजना, हर स्कूल में टॉइलट, मेक इन इंडिया का आह्वान, डिजिटल इंडिया और ई-गवरनेन्स, जन-धन योजना जिसमे सबको बैंक अकाउंट से जोड़ना है. बलात्कार पर अपनी चिंता व्यक्त की. यह आत्मीयता और बौद्धिकता का एक अच्छा मिश्रण था. लोगों मे एक उम्मीद जगा गया यह; अब चुनौतियाँ और हैं आगे क्योकि उम्मीदें भी बढ गयी हैं. लोगों को एक सपना दिख गया है मोदी जी अब वे पीछा नहीं छोड़ने वाले.
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