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वाह रे सेक्यूलरिज़्म!

गौरैया
गौरैया
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साज़िया इल्मी का एक वीडियो आजकल चर्चा में है, जिसमे वो अपनी बातचीत में मुस्लिम समुदाय को सेक्युलर न होकर कम्यूनल होनें को कह रही हैं. उनका कहना है कि सेक्युलर होने के करण ही इतनी समस्या है, इसलिये मुस्लिमों को ‘अपनें’ बारे में भी सोचना चाहिये; अपना घर भी देखना चाहिये. मजे की बात है की यह बात एक ऐसी पार्टी की सदस्या कह रहीं हैं जो अपने को सेक्युलर कहती है और सबको एक साथ लेकर चलनें की बात करती है. इस पार्टी के लिये भ्रष्ट्राचार और साम्प्रदायिकता दो बड़े मुद्दे हैं.

ऐसी ही एक बात सोनिया गाँधी नें भी अभी हल ही में कही थी. उनका अभिप्राय  ये था की मुस्लिमों को अपना सेक्युलर वोट बंटने नहीं देना चाहिये और ऐसी पार्टी को वोट नहीं देना चाहिये तो सेक्युलर न हो.

सोचने की बात है की आखिर में सेक्युलर होनें की परिभाषा क्या है?यहाँ एक प्रत्याशी धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को लामबंद करने में लगी हैं, और ये पार्टी अपने को सेक्युलर कहती है. सोनिया गाँधी की परिभाषा नें तो एक नया फूहड़पन रच दिया-“मुस्लिमों का सेक्युलर वोट”; अब कोई ये बताये की जो वोट धर्म के नाम पर है वो सेक्युलर कैसे हो गया?

भाजपा के दो नेताओं ने भी अभी हाल में ही दुर्भाग्यपूर्ण बयानबाजी की है.

इस देश में सेक्युलर होने की विचित्र परिभाषा है, खासकर नेताओं के लिये जो जब-तब जनता को भडकाते रहते हैं. वैसे जनता भी इनकी भावनाओं को खूब समझती है. इस वीडियो में भी इसको बखूबी देखा जा सकता है. दुर्भाग्य की बात है की इस देश में जाति, धर्म, क्षेत्र, सम्प्रदाय, भाषा इन सारे मुद्दों पर वोट मांगे जाते हैं पर एक देशभक्त राष्ट्रपति के 2020 तक भारत को एक विकसित देश बनाए जाने का सपना किसी भी पार्टी के एजेंडे में नही है. न तो किसी के चिल्लाने से यहाँ के मुसलमान पाकिस्तान जाने वाले हैं न पाकिस्तान के हिन्दू यहाँ आने वाले हैं. न ही सेक्युलर-सेक्युलर चिल्लाने से इस देश का कुछ होने वाला है, और न ही ये नारे किसी को एक वक़्त की रोटी दे सकते हैं. कोई पार्टी ये नही कह रही की चीन के सामान से अटे पड़े बाज़ार में कैसे हम वैश्विक प्रतिस्पर्धा करेंगे. कैसे हर आदमी के पास काम और हर के एक पास वो मूलभूत सुविधाएं होंगी जिनकी एक इंसान को जरूरत पड़ती है.अर्थव्यस्था जाती और धर्म देखकर नहीं चलती, और हर आदमी को एक बेहतर जीवन देने के लिये एक मजबूत अर्थव्यस्था चाहिये. भारत में एक मजबूत अर्थव्यस्था के लिये जरूरी हर चीज़ है सिर्फ अच्छे नेतृत्व को छोड़ कर. हमें इन बातों पर तब सोचना चाहिये जब सुबह पेट भरा हो और सांझ को भरने की गारंटी हो, बीमार हों तो दवा और डॉक्टर हों और अस्पताल जाने की सुविधा हो, पढने के विद्यालय हों और इन सारे फितूर के लिये जरूरी शिक्षा हो.

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